वैदिक सूक्तियों की विलक्षण शक्ति

 समस्त चारों वेदों से संचित



वैदिक सूक्तियों की विलक्षण शक्त

*ओ३म्*

*

 🪔 तमेव विद्वान् न बिभाय मृत्योः ।। अ० १०/८/४४*

आत्मा को जानने पर मनुष्य मृत्यु से नहीं डरता।

  🪔 यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति ।। ऋ०१/१६४/३९*
जो उस ब्रह्म को नहीं जानता वह वेद से क्या करेगा।

  🪔 तवेद्धि सख्यम स्तृतम्।। ऋ० १/१५/५*
प्रभो! तेरी मैत्री ही सच्ची है।

  🪔 स्वस्ति गोभ्यो जगते पुरूषेभ्यः ।। अ० १/३१/४*
सब पशु पक्षी और प्राणीमात्र का भला हो।

 🪔 स्वस्ति मात्र उत पित्रे नो अस्तु ।।अ० १/३१/४*
हमारे माता और पिता सुखी रहें।

 🪔 रमन्तां पुण्या लक्ष्मीर्याः पापीस्ताऽनीनशम् । अ०७/११५/४*
पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढावे और पाप की कमाई को मैं नष्ट कर देता हूं।

 🪔 मा जीवेभ्यः प्रमदः ।।। अ०८/१/७*
प्राणियों की और से बेपरवाह मत हो।

  🪔 मा प्रगाम पथो वयम् ।। अ० १३/१/५९*
सन्मार्ग से हम विचलित न हों।

  🪔 मान्तः स्थुर्नों अरातयः ।। ऋ० १०/५७/१*

हमारे अन्दर कंजूसी न हो।

  🪔 उतो रयिः पृणतो नोपदस्यति ।। ऋ० १०/११७/१*

 🪔 दानी का दान घटता नहीं।

  🪔अक्षैर्मा दीव्यः ।। ऋ० १०/३४/१३*
जुआ मत खेलो।

  🪔 जाया तप्यते कितवस्य हीना ।। ऋ० १०/३४/१०*
जुएबाज की स्त्री दीन हीन होकर दुःख पाती रहती है।

  🪔 प्रियं सर्वस्य पश्यत उत शूद्र उतार्ये ।। अ० १९/६२/१*
सबका कल्याण सोचो चाहे शूद्र हो चाहे आर्य।

  🪔 न स सखा यो न ददाति सख्ये ।। ऋ० १०/११७/४*
वह मित्र ही क्या जो अपने मित्र को सहायता नहीं देता।

  🪔 वयं स्याम पतयो रयीणाम् ।। यजु० १९/४४*
हम सर्व सम्पतियों के स्वामी हों।

  🪔 अनागोहत्या वै भीमा ।। अ० १०/१/२९*
निरपराध की हिंसा करना भयंकर है।

  🪔 क्रत्वा चेतिष्ठो विशामुषर्भुत् ।*(ऋ० १/६५/५)
प्रातः जागने वाला प्रबुद्ध होता है, उसे सब स्नेह करते हैं।

 🪔 (सोम) न रिष्यत्त्वावतः सखा ।*(ऋ० १/९१/८)
हे सोम (परमात्मा) ! तेरा सखा कभी दुःखी नहीं होता।

  🪔 त्वं जोतिषा वि तमो ववर्थ ।*(ऋ० १/९१/२२)
अपने ज्ञान के प्रकाश से हमारे अज्ञान को नष्ट करो।
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 पितेव नः श्रृणुहि हूयमानः ।*(ऋ० १/१०४/९)
पुकारे जाने पर पिता की भाँति हमारी टेर सुनो।
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 अघृणे न ते सख्यमपह्युवे ।*(ऋ० १/१३८/४)
हे प्रभो ! तेरी मित्रता से इन्कार नहीं करता।
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 न यस्य हन्यते सखा न जीयते कदाचन ।। ऋ०१०/१५२/१*

ईश्वर के भक्त को न कोई नष्ट कर सकता है न जीत सकता है।

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 तस्य ते भक्तिवांसः स्याम ।। अ० ६/७९/३*

हे प्रभो हम तेरे भक्त हो।

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 स नः पर्षद् अतिद्विषः ।। अ० ६/३४/१*

ईश्वर हमें द्वेषों से पृथक कर दे।

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 न विन्धेऽस्य सुष्टुतिम् ।। ऋ० १/७/७*

मैं परमात्मा की स्तुति का पार नहीं पाता।

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 यत्र सोमः सदमित् तत्र भद्रम् ।। अ० ७/१८/२*

जहां परमेश्वर की ज्योति है वहां सदा ही कल्याण है।

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 महे चन त्वामद्रिवः परा शुक्लाय देयाम् ।। ऋ० ८/१/५*

हे ईश्वर ! मैं तुझे किसी कीमत पर भी न छोडूँ।

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 स एष एक एकवृदेक एव ।। अ० १३/४/२०*

वह ईश्वर एक और सचमुच एक ही है।

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 न रिष्यते त्वावतः सखा ।। ऋ०१/९१/८*

ईश्वर ! आपका मित्र कभी नष्ट नहीं होता।

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 ओ३म् क्रतो स्मर ।। य० ४०/१५*

हे कर्मशील मनुष्य!तू ओ३म् का स्मरण कर।

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 एको विश्वस्य भुवनस्य राजा ।। ऋ०६/३६/४*

वह सब लोकों का एक ही स्वामी है।

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 ईशावास्यमिदं सर्वम् ।। य०। ४०/१*

इस सारे जगत में ईश्वर व्याप्त है।

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 त्वमस्माकं तव स्मसि ।। ऋ०८/९२/३२*

प्रभु ! तू हमारा है, हम तेरे हैं।

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 अधा म इन्द्र श्रृणवो हवेमा ।।ऋ०७/२९/३*

हे प्रभु !अब तो मेरी इन प्रार्थनाओं को सुन लो।

 दिप्सन्त इद्रिपवो नाह देभुः ।*(ऋ० १/१४७/३)
दबाने वाले शत्रु उपासक को नहीं दबा सकते।
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 न विन्धे अस्य सुष्टुतिम् ।*(ऋ० १/७/७)
मैं प्रभु की स्तुति का पार नहीं पाता।
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 यत्र सोमः सदमित् तत्र भद्रम् ।*(अथर्व० ७/१८/२)
जहाँ परमेश्वर की ज्योति है, वहाँ कल्याण ही है।
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 मा श्रुतेन वि राधिषि ।*(अथर्व० १/१/४)
हम सुने हुए वेदोपदेश के विरुद्ध आचरण न करें ।
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 अपृणन्तमभि सं यन्तु शोकाः ।*(ऋ० १/१२५/७)
लोकोपकारहीन कञ्जूस को शोक घेर लेता है।
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 मा प्र गाम पथो वयम् ।*(ऋ० १०/५७/१)
हम वैदिक मार्ग से पृथक न हों ।
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 त्वमस्माकं तव स्मसि ।*(ऋ० ८/१२/३२)
प्रभो ! तू हमारा है, हम तेरे हैं।
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जाया तप्यते कितवस्य हीना ।*(ऋ० १०/३४/१०)
जूएबाज की पत्नी दीन-हीन होकर दुःख पाती है।
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 न स सखा यो न ददाति सख्ये ।*(ऋ० १०/११७/४)
मित्र की सहायता न करने वाला मित्र नहीं होता।
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 मात्र तिष्ठः पराङ् मनाः ।*(अथर्व० ८/१/९)
इस संसार में उदासीन मन से मत रहो।
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 अघमस्त्वघकृते ।*(अथर्व० १०/१/५)
पापी को दुःख ही मिलता है।
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 न स्तेयमद्मि ।*(अथर्व० १४/१/५७)
मैं चोरी का माल न खाऊँ।
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 असन्तापं मे ह्रदयम् ।*(अथर्व० १६/३/६)
मेरा ह्रदय सन्ताप से रहित हो।
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 उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः ।*(ऋ० १०/१३७/१)
हे विद्वानो ! गिरे हुओं को ऊपर उठाओ।
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 अहं भूमिमददामार्याय ।*(ऋ० ४/२६/२)
मैं यह भूमि आर्यों को देता हूँ।
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मा भेर्मा संविक्थाऽऊर्जं धत्स्व ।*(यजु:० ६/३५)
मत डर,मत घबरा, धैर्य धारण कर ।
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 तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः-(१०/८/१)*
उस ज्येष्ठ ब्रह्म को  हमारा नमस्कार।
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 नेत् त्वा जहानि -(१३/१/१२)*
हे प्रभु! मैं तुझे कदापि न छोडूँ।
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 तव स्मसि -(२०/१५/५)*
हे प्रभु ! हम तेरे हैं।
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 न घा त्वद्रिगपवेति मे मनः -(२०/१७/२)*
मेरा मन तो तुझमें लगा है,तुझसे हटता ही नहीं।
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 त्वे इत् कामं पुरुहूतं शिश्रय*
हे प्रभु ! मैंने अपनी चाह को तुझ में ही केन्द्रित कर दिया है।
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 त्वामीमहे शतक्रतो -(२०/१९/६)*
हे भगवन् ! हम तेरे आगे हाथ पसारते हैं।
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 स्यामेदिन्द्रस्य शर्मणि -(२०/६८/६)*
हम प्रभु की ही शरण पकड़ें।
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 हवामहे त्वोपगन्तवा उ -(२०/९६/५)*
हे प्रभु ! हम तेरे समीप पहुँचने के लिए पुकार रहे हैं।
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 एक एव नमस्यः -(२/२/१)*
याद रखो,एक ही परमेश्वर है जो नमस्करणीय है।
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 एको राजा जगतो बभूव -(४/२/२)*
जगत् का राजा एक ही है।
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 एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति ।*
एक ही परमेश्वर को विप्रजन अनेक नामों से पुकारते हैं।
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 द्यावाभूमी जनयन् देव एकः -(१३/२/२६)*
आकाश-भूमि को पैदा करने वाला देव एक ही है।
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 सखा नो असि परमं च बन्धुः -(५/११/११)*
तू हमारा सखा और परम बन्धु है।
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 सद्यः सर्वान् परिपश्यसि -(११/२/२५)*
तुरन्त तू सबको देख लेता है।
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 महस्ते सतो महिमा पनस्यते -(२०/५८/३)*
तुझ महान की महिमा का सर्वत्र गान हो रहा है।
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 न यस्य हन्यते सखा न जीयते कदाचन -(१/२०/४)*
प्रभु के मित्र को कोई मार या जीत नहीं सकता।
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 द्वौ सन्निषद्य यन्मन्त्रयेते राजा तद् वेद वरुणस्तृतीयः -(४/१६/२)*
कोई दो बैठकर के जो मन्त्रणा करते हैं प्रभु तीसरा होकर उसे जान लेता है।
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भीमा इन्द्रस्य हेतयः -(४/३७/८)*
प्रभु के दण्ड बड़े भयङ्कर हैं।
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यत्र सोमः सद्मित् तत्र भद्रम् -(७/१८/२)*
जहाँ प्रभु है,वहाँ कल्याण ही कल्याण है।
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 विष्णोः कर्माणि पश्यत् -(७/१९/१)*
व्यापक प्रभु के आश्चर्य-जनक कर्मों को देखो।
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 न वा उ सोमो वृजिनं हिनोति -(७/२६/६)*
प्रभु पापी को कभी नहीं बढ़ाते।
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 सनातनमेनमाहुरुताद्य स्यात् पुनर्णवः -(१०/८/२३)*
प्रभु सबसे पुरातन है,पर आज भी वह नया है।
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 ततः परं नाति पश्यामि किंचन -(अथर्व० १८/२/३२)*
प्रभु से बढ़कर मुझे कुछ नहीं दीखता।
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 इन्द्रस्य कर्म सुकृता पुरुणि -( अथर्व० २०/११/६)*
प्रभु के सब कर्म शोभा के होते हैं।
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 हत्वी दस्यून् प्रार्यं वर्णमावत् -(अथर्व० २०/११/९)*
प्रभु दुष्टों का विनाश कर आर्यजनों की रक्षा करता है।
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 प्रत्यङ् नः सुमना भव -(अथर्व० ३/२०/२)*
हे प्रभु ! हम पर कृपालु मन वाला हो।
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 यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु -(७/८०/३०)*
हे प्रभु ! जिस शुभ इच्छा से हम तेरा आह्वान करें,वह हमारी पूर्ण हो।
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 मा नो हिंसीः पितरं मातरं च -(अथर्व० ११/२/२९)*
हे प्रभु ! हमारे माता-पिता को कष्ट मत दो।
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 वि द्विषो वि मृधो जहि -(अथर्व० १९/१५/१)*
हमारी द्वेषवृत्तियों और हिंसकवृत्तियों को नष्ट कर।
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 अग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव -(अथर्व० २०/१३/३)*
हे प्रभु ! तेरी मैत्री पाकर हम विनाश से बच जायें।
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 मा त्वायतो जरितुः काममूनयोः -(अथर्व० २०/२१/३)*
हे प्रभु ! तेरी चाह वाले मुझ भक्त के मनोरथ को अपूर्ण मत रख।
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 न स्तोतारं निदे करः -(अ० २०/२३/६)*
मुझ स्तोता को निन्दा का पात्र मत कर।
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 बहुप्रजा निऋर्तिमा विवेश ।।-(ऋ०१/१६४/32)*
बहुत सन्तान वाले बहुत कष्ट पाते हैं।
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 मा ते रिषन्नुपसत्तारोऽग्ने ।।-(अथर्व० २/६/२)*
प्रभो ! आपके उपासक दुःखित न हों।
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 कस्तमिन्द्र त्वावसुमा मतर्यों दधर्षति ।। (ऋ०७/३२/१४)*
ईश्वर भक्त का तिरस्कार कोई नहीं कर सकता।
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 मा त्वा वोचन्नत्रराधसं जनासः ।।-(अथर्व० ५/११/७)*
लोग मुझे कंजूस न कहें।
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 इमं नः श्रृणवद्धवम् ।।-(ऋ०१०/२६/९)*
वह प्रभु हमारी प्रार्थना को सुने।
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 🪔 स्तोतुर्मघवन्काममा पृण ।।-(ऋ० १/५७/५)*
भगवान् ! भक्त की कामनाओं को पूर्ण करो।
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 ओ३म् खं ब्रह्म ।।-(यजु० ४०/१७)*
ओ३म् परमात्मा सर्वव्यापक है।

 🪔 विश्वेषामिज्जनिता ब्रह्मणामसि ।।-(ऋ०२/२३/२)*
सम्पूर्ण विद्याओं का आदि मूल तू ही है।

 🪔 देवो देवानामसि ।।-(ऋ० १/९४/१३)*
तू देवों का देव है।

  🪔यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति ।।-(अथर्व० ९/१०/१८)*
जो उस प्रभु को नहीं जानता वह वेद से ही क्या फल प्राप्त करेगा।

 🪔 स नः पर्षदति द्विषः ।।-(ऋ० १०/१८७/५)*
वह परमात्मा हमें सब कष्टों से पार करे।

 🪔 आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ।।-(यजु० १९/३८)*
दुष्ट पुरुषों को दूर भगाओ।

 🪔 मा नः प्रजां रीरिषः ।।-(ऋ० १०/१८/१)*
हे ईश्वर ! तू हमारी सन्तान का नाश न कर।

 🪔सत्या मनसो मेऽस्तु ।।-( ऋ० १०/१२८/४)*
मेरे मन की भावनाएं सच्ची हों।

  🪔लोकं कृणोतु साधुया ।।-(यजु० २३/४३)*
जनता को सच्चरित्र बनावें।

  🪔तनूपाऽअग्न्रिः पातु दुरितादलद्यात् ।।-( यजु० ४/१५)*
ईश्वर हमें निन्दनीय दुराचरण से बचावे।

  🪔दस्यूनव धूनुष्व ।।-(अथर्व० १९/४६/२)*
दस्युओं को धुन डाल।

 🪔 आ वीरोऽत्र जायताम् ।।-(अथर्व० ३/२३/२)*
वीर सन्तान उत्पन्न कर।

 🪔 भियं दधाना ह्रदयेषु शत्रुनः ।।-(ऋ० १०/८४/७)*
शत्रु के ह्रदय में भय उत्पन्न कर दो।

  🪔 सखा सखिभ्यो वरीयः कृणोतु ।।-(अथर्व० ७/५१/१)*

मित्र को मित्र की भलाई करनी चाहिये।

  🪔 दूर ऊनेन हीयते ।।-(अथर्व० १०/८/१५)*
बुरी संगत से मनुष्य अवनत होता है।

 🪔 गोस्तु मात्रा न विद्यते ।।-(यजु० २३/४८)*
गौ का मूल्य नहीं है।


 🪔निन्दितारो निन्द्यासो भवन्तु ।।-(ऋ० ५/२/६)*

निन्दक सबसे निन्दित होते हैं। 


 🪔 विश्वम्भर विश्वेन मा भरसा पाहि ।।-(अथर्व० २/१६/५)*

प्रभो ! अपनी शक्ति से मेरी रक्षा करो। 


 🪔न त्वदन्यो मघवन्नस्ति मर्डिता ।।-(ऋ० १/८४/१९)*

हे ईश्वर !तुम्हारे सिवाय सुख देने वाला दूसरा कोई नहीं है।

 🪔 आर्य ज्योतिरग्राः ।।-(ऋ० ७/३३/७)*

आर्य प्रकाश (ज्ञान) को प्राप्त करने वाला होता है। 

🪔 करो यत्र वरिवो बाधिताय ।।-( ऋ० ६/१८/१४)*

पीड़ितों की सहायता करने वाले हाथ ही उत्तम हैं।)


 🪔 प्राता रत्नं प्रातरिश्वा दधाति ।।-(ऋ० १/१२५/१)*

प्रातः जागने वाला प्रभात बेला में ऐश्वर्य पाता है। 


🪔मिथो विघ्नाना उपयन्तु मृत्युम् ।।-(अथर्व० ६/३२/३)*

परस्पर लड़ने वाले मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। 


🪔अधः पश्यस्व मोपरि ।।-(ऋ० ८/३३/१९)*

हे नारि ! नीचे देख ऊपर मत देख ।

 

🪔मा दुरेवा उत्तरं सुम्नमुन्नशन् ।।-(ऋ २/२३/८)*

दुराचारी उत्तम सुख को मत प्राप्त करें।

🪔प्रमृणीहि शत्रून् ।।-(यजु०१३/१३)*

शत्रुओं को कुचल डालो। 

🪔परि माग्ने दुश्चरिताद् बाधस्व ।।-(यजु० ४/२८)*

हे ईश्वर ! आप मुझे दुष्ट आचरण से हटायें। 

🪔शन्नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे ।।-(यजु० ३६/८)*

प्रभु हमारे दोपाये मनुष्यों और चौपाये पशुओं के लिए कल्याणकारी और सुखदायी हो।

🪔ब्रह्मचर्येण तपसा राजा राष्ट्रं विरक्षति ।।-(अथर्व० ११/५/१७)*

ब्रह्मचर्य रुपी तप के द्वारा राजा राष्ट्र का संरक्षण करता है। 

🪔मा पुरा जरसो मृथाः ।।-(अथर्व० ५/३०/१७)*

हे मनुष्य ! तू बुढ़ापे से पहले मत मर। 

🪔सहोऽसि सहो मयि धेहि ।।*-(यजु० १९/९)

हे प्रभो ! आप सहनशील हैं मुझमें सहनशीलता धारण करिये।
 🪔नेनद्दवा आप्नुवन पूर्वमषत् ।। यजु. ४०/४*

परमात्मा भौतिक इन्द्रियों और अविद्वानों का विषय नहीं है।

              *।। ओ३म् ।।*


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